अखिलेश यादव द्वारा चुनाव न लड़ने का फैसला सोची समझी रणनीति ।
लखनऊ,जैसा कि आज एक चौकाने वाला फैसला सुनने में आ रहा है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने आरएलडी के साथ गठबंधन और सीटों के बंटवारे की घोषणा तो की है, यह भी साफ किया है कि वह खुद इस चुनाव में प्रत्याशी नहीं होंगे।जबकि, सपा उन्हें ही पार्टी की ओर से यूपी के मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश कर रही है। दरअसल, सपा सुप्रीमो के इस फैसले के पीछे एक बहुत ही सुलझी हुई रणनीति है, जिसे वह पहले से अपनाते रहे हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तो इसमें महारत हासिल हो चुकी है।सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने यूपी विधानसभा चुनाव से पहले सियासी तौर पर मीडिया को चौंकाने की कोशिश की है। उन्होंने साफ किया है कि ‘मैं खुद उत्तर प्रदेश का अगला विधानसभा चुनाव नहीं लडूंगा। राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के साथ गठबंधन के तहत चुनाव लड़ेंगे। हमारे बीच सीटों का तालमेल हो गया है।’ यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री इस समय प्रदेश की आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद हैं और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के सीएम फेस भी हैं।
ऐसा नहीं है कि अखिलेश यादव ने पहली बार इस तरह की रणनीति अपनाई है। 2012 में भी जब वह सीएम बने थे तो विधान परिषद के सदस्य के तौर पर ही सदन में पहुंचे थे। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से कुछ पहले उन्होंने एक बार जरूर इच्छा जताई थी कि वह बुंदेलखंड से चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन, बाद में वह अपनी बात से पीछे हट गए थे और साफ किया था कि उनकी विधान परिषद की सदस्यता 2018 तक है, इसलिए वह खुद चुनाव मैदान से दूर रहेंगे। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ पार्टी के लिए प्रचार ही किया था।
अखिलेश यादव को पता है कि इस चुनाव में अगर भाजपा के सामने चुनौती पेश नहीं कर पाए तो सपा के लिए यूपी में राजनीतिक जमीन बचाए रखना मुश्किल हो सकता है। इसलिए उन्होंने पहले ओम प्रकाश राजभर से हाथ मिलाया है और सोमवार को आरएलडी के साथ गठबंधन और सीटों के बंटवारे की घोषणा की है। यही नहीं उनकी जिस तरह से हाल में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से दो-दो बार मुलाकात हुई है, उसे भी प्रदेश की चुनावी रणनीति के लिए संयोग से बढ़कर होने के कयास लगाए जा रहे हैं। रविवार को लखनऊ एयरपोर्ट पर आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी की मौजूदगी में हुई यह मुलाकात काफी महत्वपूर्ण है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि लंबी राजनीतिक चर्चा भी हुई है। यही नहीं उन्होंने अपने चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के बारे में भी कहा है कि वह ‘उनको और उनके लोगों को पूरा सम्मान देने को तैयार हैं।’
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले साल सातवीं बार मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन उन्होंने 36 साल से कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है। वह आज भी बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं, जहां 2024 तक के लिए उनकी सदस्यता पक्की है। नीतीश की रणनीति के बारे में कहा जाता है कि खुद चुनाव लड़ने का मतलब है एक सीट पर अधिक फोकस करना, जिसका असर दूसरी सीटों पर पड़ने की आशंका रहती है।
दरअसल, सपा अध्यक्ष किसी एक या दो विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल करके खुद परेशानी मोल नहीं लेना चाहते। वह जानते हैं कि अगले साल होने वाला उत्तर विधानसभा चुनाव खुद उनके लिए और उनकी पार्टी की राजनीति के लिए कितना महत्वपूर्ण है। अगर वह खुद चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र पर भी फोकस करना पड़ेगा। इसका परिणाम यह हो सकता है कि वह पूरे प्रदेश पर पूरा फोकस नहीं कर पाएंगे। यानी वह समाजवादी पार्टी और अपने गठबंधन को भाजपा के खिलाफ लड़ाई को धार देने के लिए खुद चुनाव मैदान में उतरने से बचना चाहते हैं। अखिलेश के नजरिए से देखें तो चुनाव के बाद अगर जरूरत पड़ी तो उनके लिए विधान परिषद का सदस्य बनने का विकल्प खुला रहेगा।