भारतीय संसद की संसदीय परम्परा में 2024 की बिदाई से कुछ दिन पूर्व 19 दिसंबर को संसद के मकर द्वार पर जो कुछ भी हुआ है,इससे पूरी दुनिया में भारत के लोकतंत्र की शाख़ को क्या बट्टा नहीं लगा? देश में पक्ष और विपक्ष संसद के शीतक़ालीन सत्र के पहले दिन से ही घमासान और गतिरोध ज़ारी
है। देश की राजनीति किस दिशा में जा रही है,क्या नेताओं में एक दूसरे के लिए जरा भी लिहाज़ और सम्मान नहीं बचा,लोकतंत्र में प्रदर्शन का सभी को अधिकार है,लेकिन जब सत्ता और विपक्ष आपस में भिड़ जाएँ और इस कदर धक्का-मुक्की कर लें और कुछ सांसद चोटिल हो जाएँ,जबकि सत्ता और विपक्ष एक दूसरे पर ही आरोप लगाने लग जाएँ,तो क्या सच्चाई देश के सामने नहीं आनी चाहिए? दोनों ही पहले भाजपा और फिर कॉंग्रेस ने एफ़आइआर दर्ज करवा दी है,भाजपा ने, नेता विपक्ष राहुल गाँधी पर बुजुर्ग सांसद प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत को धक्का देकर गिराने का आरोप लगाया है और विभिन्न धाराओं केस दर्ज करवा दिया ,दिल्ली क्राइम ब्रांच इसकी जाँच करेगी।भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोक सभा में नेता विपक्ष राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देकर माँग कर दी है कि राहुल की सदस्यता जाँच रद्द की जाय।वहीं कॉंग्रेस भी पूरे देश में प्रदर्शन करेगी।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने संसद के किसी भी द्वार पर प्रदर्शन से रोक लगा दी है।
आख़िर ऐसा हुआ क्यों? क्या देश के गृहमंत्री अमित शाह के भारत रत्न बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर को लेकर एक बयान ने कॉंग्रेस और और इण्डिया गठबंध को प्रदर्शन का एक बड़ा अवसर दे दिया है,वहीं कॉंग्रेस का आरोप है कि कल 19 दिसम्बर को संसद के मकर द्वार पर जो कुछ भी हुआ स्वस्थ्य लोकतत्र के लिए अच्छा नहीं है, इससे देश कलंकित हुआ है।वहीं इंडिया गठबंधन के सांसदों ने सीसीटीवी फ़ुटेज जारी करने की माँग कर दी है।