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हॉलीवुड एक्शन मूवी की तरह है जॉन अब्राहम की नयी मूवी ‘अटैक’

नई दिल्ली। अटैक एक ऐसी मूवी है, जिसमें दो तीन नए प्रयोग किए गए हैं, जो अगर दर्शकों को पसंद आए तो समझिए ये हॉलीवुड एक्शन मूवीज की तरह सीरीज में तब्दील हो सकती है. फिल्म का पहला हाफ काफी उम्मीदें जगाता है और आप काफी कुछ बड़ा सोचने लगते हैं, जो क्लाइमेक्स तक आएगा, ये अलग बात है कि एक आम दर्शक और एक फिल्म क्रिटिक की आकांक्षाएं अलग अलग हो सकती हैं. बावजूद इसके अगर आप एक लाइन में जानना चाहते हैं तो ये मान लीजिए कि इस मूवी की टिकट में पैसा खर्च करके कम से कम आपको अफसोस तो नहीं होगा. हां, ये हो सकता है कि आपमें से बहुतों को ये बहुत ज्यादा ही पसंद आ जाए.

इस मूवी में जो दो नए प्रयोग किए गए हैं, उनमें से एक है सुपर सोल्जर का. एक ऐसा सोल्जर, जिसके दिमाग में एक चिप है, जिसके जरिए उसके शरीर में इरा नाम की असिस्टेंट उसी तरह रहती है, जैसे आपके कम्प्यूटर में अलेक्सा. यानी हर सवाल का जवाब देने वाली. इरा की ताकत है कि वो हर तरह की इनफॉरमेशन जो गूगल व सरकारी सिक्योरिटी फाइल्स में मौजूद है, अर्जुन को दे सकती है. कुछ और भी ताकतें अर्जुन को मिल सकती हैं, लेकिन डायरेक्टर ने अभी हीरो को सुपर ह्यूमन बनने से शायद रोका है, क्योंकि वह दर्शकों की प्रतिक्रिया देखना चाहता है. दूसरा प्रयोग किया है स्पेशल इफैक्ट्स के साथ. संसद पर हमले का सीन कई फिल्मों में आया, वेबसीरीज ‘स्पेशल ऑप’ में भी आया, लेकिन जिस तरह का इसमें वो किसी भी मूवी या सीरीज में नहीं. जिन लोगों ने संसद को अंदर से देखा है, वो भी हैरत में पड़ जाएंगे कि संसद के अंदर ऐसा शूट कैसे हो सकता है. आप भी हैरान रहने के लिए तैयार रहिए.

कहानी है एक ऐसे आर्मी कमांडो अर्जुन शेरगिल (जॉन अब्राहम) की जो आतंकियों के खिलाफ बड़े बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने में घबराता नहीं, उसकी महबूबा के रोल में हैं एयर होस्टेस आयशा (जैकलीन फर्नांडीज). दोनों की प्रेम कहानी तेजी से आगे बढ़ ही रही होती है कि एयरपोर्ट पर एक आतंकी हमले में आयशा दम तोड़ देती है और अर्जुन हमेशा के लिए पैरालाइज्ड हो जाता है, और बन जाता है जीवन भर के लिए ह्वील चेयर का मोहताज. अब उसकी देखभाल करती हैं उसकी मां रत्ना पाठक शाह.

इस हमले के पीछे नाम आता है आतंकी हामिद गुल (एलहम एहसास) का, भारत की सरकार उसे किसी भी तरह मौत की सजा देना चाहती है. तब सेंट्रल कमेटी ऑफ सिक्योरिटी की मीटिंग में एनएसए (प्रकाश राज) एक रास्ता सुझाते हैं, एक पैरालाइज्ड सोल्जर को सुपर सोल्जर बनाने का. इस काम को अंजाम देती हैं एक साइंटिस्ट सबा (रकुल प्रीत सिंह), जो असल जिंदगी में ब्रेन चिप लगे एक व्यक्ति नाथन को आधार बनाकर ऐसी तकनीक तैयार करती हैं, जिससे कि इरा नाम की वर्चुअल असिस्टेंट सुपर सोल्जर बनने में मदद करती है. इधर चूंकि अर्जुन आयशा का बदला हामिद से लेना चाहता है, वो इस मिशन के लिए तैयार हो जाता है.

अभी ये लोग हामिद की तलाश में कुछ ऑपरेशन प्लान कर पाते, उससे पहले ही हामिद के साथी संसद पर अटैक कर देते हैं और पीएम व पूरी कैबिनेट को बंधक बना लेते हैं. डायरेक्टर की मेहनत इस बात में साफ दिखी है कि उसने कैसे भी संसद के पूरे सिस्टम को परदे पर दिखाया, वो एक एक गेट, कौना, खम्बे, गलियारे भी हूबहू वैसे ही दिखाए, जिससे जरा भी नहीं लगता कि ये किसी नकली संसद के सैट पर तैयार हुई है. हालांकि नकली सा लगता है तो गृह मंत्री और आर्मी चीफ आदि के बीच में इससे निबटने के उपायों पर होने वाला झगड़ा.

100 के करीब आंतकी संसद में घुसते हैं, और सभी सुरक्षा गार्ड्स को मारकर संसद के हर सदस्य व कर्मचारियों को बंधक बना लेते हैं और सरकार से एक एक करके अपनी शर्तें मनवाना शुरू करते हैं. संसद के सभी दरवाजों पर बम लगा देते हैं. ऐसे में सुपर सोल्जर कैसे अपने काम को अंजाम देता है, पूरी कहानी इसी को लेकर है. अरसे बाद जॉन अब्राहम आपको काफी दमदार नजर आएंगे.

मूवी में खास है इसका विलेन लंदन में रहने वाले अफगानी एक्टर एलहम अहसास को हामिद गुल का रोल दिया गया है, जो दुनिया भर के कई डायरक्टर्स की मूवीज में इस तरह के रोल कर चुके हैं. नया चेहरा है और चूंकि मंझे हुए अभिनेता भी हैं, तो काफी हद तक प्रभावित भी करता है. लेकिन अरसे बाद किरण कुमार के हिस्से में आर्मी चीफ का जो रोल आया है, वो कतई प्रभावित नहीं करता. रजित कपूर भी खांटी नेता के रोल में प्रभावित करते हैं, लेकिन रत्ना पाठक शाह के हिस्से में ज्यादा कुछ नहीं आया.रोल छोटा तो जैकलीन का भी है, वो भी सजावटी सा है, लेकिन अर्जुन के सपनों में उनके सीन लगा लगाकर डायरेक्टर ने उनको मूवी में बनाए रखा है, वहीं दूसरी हीरोइन रकुल प्रीत को शायद अब तक का सबसे पॉवरफुल रोल मिला है, ये अलग बात है कि उनके हिस्से में रोमांस, गाने शायद इस मूवी के सीक्वल में ही आएंगे. ऐसे में प्रकाश राज और जॉन अब्राहम ने पूरी मूवी अपने कंधों पर उठा रखी है. बाकी दारोमदार डायरेक्टर का है, जिसने पूरी मूवी को कहीं भी ढीला नहीं पड़ने दिया, तमाम इमोशनल रोमांटिक सींस होने के वाबजूद लक्ष्य राज आनंद ने ये साबित कर दिया कि एक था टाइगर और न्यूयॉर्क जैसी मूवीज में उनका असिस्टेंड डायरेक्टर का तजुर्बा बेकार नहीं गया, मूवी वाकई में पेसी है, अपनी पटरी से नहीं उतरती दिखती.

तो ऐसे में चूंकि ऑपरेशन हॉलीवुड एक्शन मूवीज की तरह है, और सबसे खास बात संसद का ढांचा, उस पर मंडराते हेलीकॉप्टर, उसके गलियारों में मुठभेड़, मुख्य दरवाजे से जान बचाकर भागते बंधक आपको शर्तियां प्रभावित करेंगे. वैसे भी वीएफएक्स और स्पेशल इफैक्ट्स में इस मूवी पर काफी काम हुआ है. डायलॉग्स के निशाने पर नेता रखे गए हैं. देशभक्ति को उभारने वाली मूवी है. एक्शन और इमोशन का भरपूर बैलेंस रखा गया है. अर्जुन और इरा की नोंकझोक में आपको कॉमेडी की झलक भी देखने को मिलेगी. म्यूजिक भी ऐसा है कि मूवी के पेस पर हावी नहीं होता, बल्कि जब रोमांटिक या इमोशनल ठहराव की जरूरत होती है, वो वहां बिलकुल फिट बैठता है. सो ऐसे में चूंकि मूवी की लम्बाई 2 घंटे से भी कम है, आपके पैसे वसूल होने तय हैं.

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