ब्रिटेन में महंगाई की मार, 80% जनता जूझती हुई आर्थिक संकट से
नई दिल्ली। ब्रिटेन में महंगाई की मार इतनी बढ़ गई है कि लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल हो रहा है। देश में करीब आधे परिवार रोजाना खाने में कटौती कर रहे हैं। उपभोक्ता समूह ‘विच’ के एक सर्वे में ये आंकड़े सामने आए हैं। द यूएस सेंसस ब्यूरो के अनुसार, इस साल के मध्य में ब्रिटेन की जनसंख्या 5,59,77,178 थी।
समूह की ओर से 3000 लोगों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक संकट से पहले की तुलना में पर्याप्त और पौष्टिक भोजन करना कठिन हो रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लगभग 80 फीसदी परिवारों को आर्थिक रूप से मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। ब्रिटेन में खाद्य पदार्थों से संबंधित मुद्रा स्फीति दर सितंबर में 10 फीसदी से अधिक हो गई है। वहीं, खुदरा मूल्य सूचकांक 12.6 फीसदी पहुंच गया जो अगस्त में 12.3 फीसदी था।
ब्रिटेन में ऊर्जा मूल्य में वृद्धि के कारण आर्थिक संकट बढ़ गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण गैस, पेट्रोलियम की आपूर्ति प्रभावित हुई है। साथ ही बिजली की दरें भी बढ़ गई हैं। ऊर्जा मूल्य बढ़ने से विभिन्न वस्तुओं के दाम भी काफी बढ़ गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन में आर्थिक और ऊर्जा संकट के कारण इस साल सर्दी में लाखों लोग अपने घरों को पर्याप्त गर्म रखने में असमर्थ होंगे। इस तरह उन्हें भोजन में कटौती के साथ सर्दी की मार भी ज्यादा झेलनी होगी।
ब्रिटेन में ट्रेड यूनियन प्रधानमंत्री लिज ट्रस से पद छोड़ने की मांग कर रही हैं। कामगार महंगाई के अनुरूप वेतन नहीं मिलने पर विरोध जता रहे हैं। ट्रेड्स यूनियन कांग्रेस (टीयूसी) के अम्ब्रेला ग्रुपिंग के महासचिव फ्रांसेस ओ’ग्राडी ने एक संदेश में कहा, आपकी पार्टी के 12 वर्षों की सरकार के लिए धन्यवाद, लाखों लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार, दुनिया में 79.5 करोड़ लोग भूख से पीड़ित हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि साल 2050 तक अतिरिक्त 200 करोड़ लोग भोजन की कमी झेलेंगे। इसके अलावा, प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति किसी न किसी रूप में कुपोषण से पीड़ित है। इसका अर्थ है कि उनके आहार में पर्याप्त विटामिन और खनिजों की कमी होती है, जिससे बच्चों में विकास रुकने जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के अधिकांश भूखे लोग विकासशील देशों में रहते हैं, जिसमें एशिया सबसे अधिक भूखे लोगों वाला महाद्वीप है। एशिया में लगभग 52.6 करोड़ लोग भूख से पीड़ित हैं। वहीं खराब पोषण के कारण हर साल 5 साल से कम उम्र के 31 लाख बच्चों की मौत होती है।