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स्वाद ही नहीं सेहत के राज भी है मिटटी के बर्तन में खाने के

एल्यूमीनियम, आयरन के बर्तन में खाना बनाने के दौरान खाना कई बार जल जाता है साथ ही जरूरत से ज्यादा पक भी जाता है। जो बेशक पचने में भले ही आसान है लेकिन स्वाद और न्यूट्रिशन में शून्य हो जाता है। लेकिन मिट्टी के बर्तन में खाना धीमी आंच पर सही तरीके से पकता है।

भोजन का न्यूट्रिशन रहता है बरकरार

खाना बनाने के लिए पीतल, कांसा बर्तन का इस्तेमाल करते हैं तो इसमें भोजन के ज्यादातर न्यूट्रिशन समाप्त हो जाते हैं वहीं अब अगर इनकी जगह मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करेंगे तो भोजन के ज्यादातर न्यूट्रिशन उसमें बने रहते हैं। जो हमारी सेहत के लिए जरूरी हैं।

तेल का कम इस्तेमाल

नॉन स्टिक को छोड़कर बाकी स्टील, आयरन और एल्यूमिनियम के बर्तनों में खाना पकाने के दौरान तेल का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है जिससे खाना और मसाले तली से चिपके नहीं, वहीं मिट्टी के बर्तनों में ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि खाना बर्तन में चिपकता ही नहीं। तेल, मसाले का कम इस्तेमाल सेहत के लिए कितना फायदेमंद होता है इससे तो आप वाकिफ होंगे ही।

बार-बार करने की जरूरत नहीं पड़ती

वैसे तो खाना गर्म कर ही खाने की सलाह दी जाती है लेकिन बार-बार गर्म करने से खाने के स्वाद में भी फर्क आने लगता है। लेकिन अगर आप मिट्टी के बर्तन में खाना बनाते हैं तो भोजन ज्यादा समय तक गर्म बना रहता है।

कुल्हड़ की चाय हो या फिर हांडी बिरयानी, इसके स्वाद से तो आप वाकिफ होंगे ही। गांवों में तो आज भी ज्यादातर घरों में मिट्टी के बर्तनों में ही खाना पकाया व खाया जाता है इसलिए वहां का स्वाद में बहुत ज्यादा अंतर होता है। तो स्वाद और सुगंध को बरकरार रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों में बनाएं खाना।

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