वर्तमान अफगान समस्या को लेकर अभी तक 4 देशों के राजनयिक की भारत यात्रा, समस्या चीन? समाधान भारत
NEW DELHI: तालिबान के अफगानिस्तान के कब्जे के बाद से कुछ ऐसे खुराफाती देश हैं जिनकी नापाक नजरें अफगानिस्तान और पाकिस्तान से मिल कर भारत पर है,जो पूरी दुनिया के लिए भी खतरा हो सकते हैं उन देशों की बढ़ती ताकतों को रोकने के लिए अब सभी की नजरे भारत की ओर है।
अभी तक भारत को अफगान शांति वार्ता की बैठकों में आने का न्योता तक नहीं दिया जा रहा था। सिर्फ इतना ही नहीं, भारत का दशकों पुराना मित्र देश रूस भी चीन पाकिस्तान के दबाव में आकर भारत को ट्रोएका प्लस की बैठक से बाहर रखे हुए था। लेकिन अब अफगानिस्तान में हालात में बदलाव दिखाई देने लगे हैं।
पिछले सप्ताह के मुकाबले इस सप्ताह अफगान शांति वार्ता में भारत की भूमिका बहुत हद तक बदल गई है। ये बदलाव 15 अगस्त से 13 सितंबर के बीच का है। जब पाकिस्तान चीन के तालिबान पर प्रभाव के कारण भारत को इससे अलग रखा गया था, हालांकि भारत ने अभी तक अफगानिस्तान में 3 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं, जो विभिन्न परियोजनाओं में लगाए गए हैं।
अफगानिस्तान के तालिबान राज में यहां पर कट्टरता न फैले, मादक पदार्थो का उत्पादन से लेकर व्यापार तक दुनिया में न फैले सबसे बड़ी बात तालिबान के विचारधारा को अफगानिस्तान में ही रोके रखा जाए इसे यहां से बाहर नहीं फैलने दिया जाए इस्लामिक आतंकवाद यहां से दूसरे देशों में नहीं फैले, इसके लिए अब दुनिया के देश भारत की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। वैसे, बात चाहे अफगानिस्तान की हो या फिर चीन के आक्रामक रुख की, भारत इन दोनों मुद्दों पर सेंटर स्टेज पर है, क्योंकि दुनिया का मानना है कि इससे भारत अच्छी तरह निपट सकता है।
वर्तमान अफगान समस्या को लेकर अभी तक 4 देशों के राजनयिक भारत की यात्रा पिछले 6 दिनों में कर चुके हैं। इस दौरान पहले विदेशी राजनयिक जिन्होंने भारत की यात्रा की, उनमें लिटेन की खुफिया एजेंसी एमआई-6 के चीफ थे, जिन्होंने भारत आकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मलाकात की। इसके अगले दिन अमेरिकी खुफिया एजेंसी के चीफ विलियम बर्न्स भारत आए
थे। इन्होंने अजित डोभाल के साथ-साथ भारत की कई सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों से हुई। इसके बाद रूसी सुरक्षा एजेंसी के चीफ निकोलाई पात्रोशेव ने भारत की यात्रा की इन्होंने प्रधानमांत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ अजित डोभाल के साथ मुलाकात की। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के विदेश रक्षा मांलत्रयों ने भारत की यात्रा की, जिसे टू प्लस टू कहा गया। इन सभी देशों के प्रतिनिधियों की भारत यात्रा का बस एक ही मुद्दा था अफगान के वर्तमान हालात।
इन 4 देशों के प्रतिनिधियों के अलावा सऊदी अरब के विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान अल सऊद ईरान के विदेश मांत्री होसैन आलम अब्दुलाहैन की भी भारत यात्रा जल्दी होने वाली है। ईरानी विदेश मांत्री तो सोमवार को ही भारत दौरे पर आने वाले थे, लेकिन किसी वजह से उनका दौरा कुछ समय के लिए टल गया है। होसैन अब शाांघाई सहयोग सांघ की बैठक के बाद ही भारत का दौरा
करेंगे। इसके साथ ही जानकारों का कहना है कि जल्दी ही यूएई के विदेश मंत्री भी भारत का दौरा जल्दी ही कर सकते हैं, लेकिन उनके दौरे की तारीख अभी तय नहीं है। ऐसे समय में इनके भारत आने का मुद्दा भी अफगान के वर्तमान हालात हैं।
दरअसल, इन सभी को अफगानिस्तान में चीन की मौजूदगी से चिंता हो रही है, क्योंकि चीन का पुराना रिकार्ड रहा है, जब-जब चीन की शक्ति बढ़ी है, दुनिया के कई देश दहशत में आने लगे थे, इस बार चीन की सीधी जांग अमेरिका से है। चीन अमेरिका की घटती शक्ति का लाभ उठाकर धूर्तता से अपने कदम आगे बढ़ा रहा है।
जानकारों की राय में ईरान भी रूस की तरह भारत के साथ अफगानिस्तान के मुद्दे पर आपसी सहयोग बढ़ाना चाह रहा है। इन सभी देशों को मालूम है कि अगर तालिबान सरकार को पैसे न मिलें तो ये सरकार कुछ महीनों की मेहमान होगी, लेकिन अफगानिस्तान में चीन अपना पैसा लगाकर इस पूरे क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, सामरिक तौर पर वह भारत को अफगानिस्तान में
रहकर घेरना चाहता है। क्योंकि उसका मित्र देश पाकिस्तान अफगानिस्तान का पड़ोसी है यहां रहकर चीन तालिबान के कंधे पर बंदूक रखकर कश्मीर में अशांति फैला सकता है भारत को चारों तरफ से घेरना चाहता है। दुनियाभर के देश यह जानते हैं कि अगर तालिबान को घेरने के लिए इस समय भारत के साथ नहीं आए, तो चीन यहां आकर अपनी प्रचंडता दिखाएगा तानाशाह चीन का कहर सारी दुनिया को झेलना होगा।