Breaking
Axiom 4 Space Mission: लखनऊ के शुभांशु शुक्ला हुए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए रवानाकहीं ये वर्ल्ड वॉर की दस्तक तो नहीं? ईरान ने किया अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमला११वें अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस का एस.एम.एस में आयोजनअंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर एकेटीयू ने सूर्य नमस्कार का बनाया रिकॉर्डएसआरएमयू में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का हुआ आयोजनअहमदाबाद प्लेन क्रैश: लंदन जाता प्लेन उड़ते ही हॉस्टल पर जा गिरा, 242 की मौतफिर से टल गया लखनऊ के शुभांशु शुक्‍ला का स्पेस मिशन मिशन, Axiom-4 में आई तकनीकी खराबीजीत के जश्न के दौरान चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास मची भगदड़, 11 की मौत18 साल के इंतजार के बाद आरसीबी ने थामी ट्रॉफी, पहली बार जीता आईपीएल का खिताबSMS में मंथन ”कार्यक्रम के अन्तर्गत अनलीश योर बेस्ट सेल्फ शीर्षक पर व्याख्यान आयोजित
Breaking Newsभक्ति पोस्टराष्ट्रीय

श्राद्ध कर पितरों को करें प्रसन्न, ज्योतिषार्य ने बताई तर्पण की विधि

To please the ancestors: पितरों के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहते हैं। “ श्र्द्धार्थमिदम श्राद्धम।” इसी को पित्रियज्ञ भी कहते हैं। पराशर ऋषि के अनुसार, देशकाल परिस्थिति के अनुसार श्रद्धापूर्वक जो कर्म काला तिल, जौ और कुश (दर्भ) के साथ मन्त्रों के द्वारा किया जाए, वही श्राद्ध है। प्रति वर्ष पितृ पक्ष में 15 दिन पितरों के निमित्त तर्पण करने वाला सभी पापों से मुक्त होकर वंश वृद्धि करता है। ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, श्राद्ध से सन्तुष्ट होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घ आयु, सन्त्तति, धन, विद्या, राज्यसुख एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।

ऐसे करें श्राद्ध, पितर होंगे तृप्त

शास्त्रों एवं पुराणों में कहा गया है कि यदि धन, वस्त्र एवं अन्न का अभाव हो तो गाय को शाक (साग) खिलाकर भी श्राद्ध कर्म की पूर्ति की जा सकती है। इस प्रकार का श्राद्ध-कर्म एक लाख गुना फल प्रदान करता है।

यदि शाक लेने का भी धन न हो तो खुले स्थान में दोनों हाथ ऊपर करके पितृगण के प्रति इस प्रकार कहे— “हे मेरे समस्त पितृगण! मेरे पास श्राद्ध के निमित्त न धन है, न धान्य है, आपके लिए मात्र श्रद्धा है, अतः मैं आपको श्रद्धा-वचनों से तृप्त करना चाहता हूं। आप सब कृपया तृप्त हो जाएं।” ऐसा करने से भी श्राद्ध कर्म की पूर्ति कही गई है।

श्राद्ध के लिए संकल्प एवं तर्पण विधि

श्राद्ध-कर्म से पूर्व संकल्प करना चाहिए- “ॐ अद्य श्रुतिस्मृति पुराणोक्त फल प्रापत्यर्थम देवर्षिमनुष्य पितृतर्पणम अहं करिष्ये।” इसके बाद कुश के द्वारा देव तर्पण अक्षत् से पूरब की ओर मुंह करके जौ से ऋषि एवं मनुष्य तर्पण उत्तराभिमुख होकर तथा अन्त में दक्षिणाभिमुख होकर पितरों का तर्पण काला तिल से करना श्रेयस्कर होता है। तत्पश्चात् पितरों की प्रार्थना करनी चाहिए। समस्त श्राद्ध कर्म मध्याह्न में करना श्रेष्ठ होता है।

पितरों की प्रार्थना

“ ॐ नमो व:पितरो रसाय नमो व: पितर: शोषाय नमो व:पितरो जीवाय नमो व: पीतर:स्वधायै नमो व: पितर:पितरो नमो वो गृहान्न: पितरो दत्त:सत्तो व:।।”

अथवा

“ पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।।

NOTE- ”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। 

Related Articles

Back to top button