उत्तर प्रदेश: कितना भी कोई दवा कर ले कि समाज बदल गया है परंतु भारत की राजनीति आज भी जातिवाद पर ही खड़ी है कांग्रेस ने पिछले दिनों जिस तरह से जातिवाद का कार्ड खेलकर दलित मुख्यमंत्री चुना। यह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए तैयार की गई भूमि का पहला कदम है।
कांग्रेस पार्टी ने पंजाब से उत्तरप्रदेश को भी साध लिया है। दरअसल पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी के शपथ लेने के साथ ही 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले जातिवाद देश की राजनीति के केंद्र में आ गया है। चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने को न सिर्फ पंजाब बल्कि दूसरे राज्यों के लिए भी बेहद अहम कदम माना जा रहा है। कांग्रेस पार्टी ने खासतौर पर उत्तर भारत के किसी राज्य में पहली बार अनुसूचित जाति के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाकर ऐसा दांव चला है जिसकी चर्चा राजनीतिक हलकों में हावी होती दिख रही है।
समाजवादी पार्टी-आम आदमी सहित कई दलों के नेताओं ने उनकी नियुक्ति का स्वागत किया है। इस पूरे प्रकरण के बाद अब उम्मीद ये लगाई जा रही है कि जल्द ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो जाए। भीम आर्मी के चंद्रशेखर से प्रियंका गांधी की मुलाकात कांग्रेस की इसी रणनीति का हिस्सा थी।ये ऐसा मौका है जब अखिलेश यादव की ओर से प्रबुद्ध सम्मेलन और दलित संवाद कार्यक्रमों के जरिए ब्राह्मण और दलितों की भी बात हो रही है। समाजवादी लोहिया वाहिनी ने विभिन्न जिलों में 19 सितम्बर 2021 से ”गांव-गांव दलित संवाद” कार्यक्रम शुरू किया है। फिलहाल आने वाले दिनों में प्रियंका गांधी का भी 29 सितंबर से 23 अक्टूबर तक कई रैलियों और चुनावी यात्राओं का कार्यक्रम प्रस्तावित है। जिस समय इस गठबंधन सपा-कांग्रेस के बीच बात और आगे बढ़ सकती है।
उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर-प्रदेश की 2022 की चुनावी जंग जीतने के लिए ‘नई हवा है, नई सपा है’ का नारा दिया है। जिसके बाद अखिलेश ने इस नारे के साथ-साथ मुलायम सिंह यादव के एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण की परिभाषा भी बदल दी है। अखिलेश यादव सत्ताधारी बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व के जवाब में सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल कर दवाब दे रहे हैं। ऐसे समय में जब पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री मिला है। इस पर क्रेडिट लेने में भी कांग्रेस पार्टी पीछे नहीं है। पार्टी के बड़े नेता विपक्षी दलों को चुनौती देते हुए ये बिसात चली है।