अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद भारत की क्या होगी रणनीति
काबुल। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में कई ऑपरेशन किए.काबुल बम विस्फोट के बाद से अमेरिकी सैनिकों ने अमेरिकियों को वापस लाने की सारी कोशिशें की. अमेरिका की तरफ से दी गई डेडलाइन पूरी होने से पहले ही अमेरिकी सैनिक वापस हो गए हैं. इस बात से तालिबान समर्थक सभी बलों में जश्न का माहौल है। जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने बताया कि अमेरिका लगभग 1,23,000 नागरिकों को अफगानिस्तान से बाहर निकालने में कामयाब रहा।
अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान समर्थक बलों में जश्न का माहौल है। इस बीच तालिबान ने मंगलवार को कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिकी शिकस्त दूसरे हमलावरों और हमारी आने वाली नस्लों के लिए एक सबक है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने काबुल से आखिरी अमेरिकी विमान के रवाना होने के कुछ ही देर बाद एयरपोर्ट की रनवे पर से कहा कि यह दुनिया के लिए भी एक सबक है। तालिबान के प्रवक्ता ने कहा यह जीत अफगानिस्तान को मुबारक हो। उन्होंने कहा कि ये फतह हम सब की है। अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साथ कैसे होंगे भारत के रिश्ते। क्या तालिबान और भारत के मध्य रूस कर सकता है मदद।
- प्रो. हर्ष पंत ने कहा कि अमेरिकी सैनिकों से मुक्त तालिबान के समक्ष एक नई चुनौती होगी। हालांकि, तालिबान ने बार-बार अपने पहले शासन की तुलना में एक सहिष्णु और खुली शासन व्यवस्था देने का वादा किया है। तालिबान ने कहा कि हम अमेरिका और दुनिया से अच्छे संबंध चाहते हैं। हम सभी के साथ अच्छे कूटनीतिक रिश्तों की उम्मीद करते हैं।
- प्रो पंत ने कहा कि अफगानिस्तान के बदले हुए हालात ने भारत के समक्ष भी एक नई चुनौती पेश की है। यह फैसले की घड़ी है। उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिका से इतर अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्तों को देखना होगा। भारत को यह देखना होगा कि अफगानिस्तान में उसे क्या फायदा और नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि हाल में जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने भी इस सच को स्वीकार करते हुए कहा था कि तालिबान एक कड़वा सच है, लेकिन हमें इससे निपटना होगा। मर्केल ने ऐसा कहकर अफगानिस्तान के साथ एक नए संबंधों की ओर संकेत किए हैं।
- उन्होंने कहा कि यह बात तब और अहम हो जाती है जब काबुल पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित होने के पूर्व 11 अगस्त को अफगानिस्तान के मुद्दे पर रूस, चीन, पाकिस्तान और अमेरिका के प्रतिनिधि कतर की राजधानी दोहा में मिले थे। भारत इस वार्ता में शामिल नहीं था। उन्होंने कहा कि रूसी समाचार एजेंसी तास ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के विशेष दूत जामिर काबुलोव के हवाले से कहा था कि भारत इस वार्ता में इसलिए शामिल नहीं हो पाया, क्योंकि तालिबान पर उसका कोई प्रभाव नहीं है। ऐसे में भारत को अफगानिस्तान में एक नई रणनीति के साथ पेश आना होगा।
- प्रो. पंत ने कहा कि तालिबान के आने से पहले भारत को रूस ने आगाह किया था कि अफगानिस्तान को लेकर उसे अपने रुख को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत-तालिबान के मध्य रूस माडरेटर की भूमिका अदा कर सकता है। इससे भारत और तालिबान के बीच शंका की स्थिति हो सकती है। दोनों के बीच वार्ता का दौर चल सकता है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर रूस की इस कूटनीति पहल को भारत किस अर्थ में लेता है यह तो वक्त बताएगा। उन्होंने कहा कि इसमें रूस का भी एक कूटनीति लाभ है। रूस कभी नहीं चाहेगा कि अफगान के मुद्दे पर भारत पूरी तरह से अमेरिकी खेमे में चला जाए। अब भारत को अपने हितों के अनुरूप फैसला लेना है।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद भारत समेत अधिकतर देशों ने वहां से अपने दूतावास कर्मचारियों को बाहर निकलना शुरू कर दिया है। इस वक्त अफगानिस्तान में महज तीन देशों ने (रूस, चीन और पाकिस्तान) अपने दूतावास खोल रखे हैं। चीन की तरह तालिबान ने रूस को यह भरोसा दिया है कि वह अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल अपने पड़ोसियों पर हमला करने नहीं देगा। उधर, पाकिस्तान की स्थिति थोड़ी भिन्न है। पाकिस्तान पर हमेशा से तालिबान का साथ देने का आरोप खुद अफगान की गनी सरकार लगाती रही है।