रूसी राष्ट्रपति का भारत आगमन, अमेरिका और चीन को चुभ रहा |

नई दिल्ली : रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत आगमन , लेकिन चीन और अमेरिका की पैनी नजर है पुतिन छह दिसंबर को भारत के दौरे पर आ रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नई दिल्ली में होने वाले 21वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। पुतिन की इस यात्रा पर चीन और अमेरिका की पैनी नजर है। खास बात यह है कि पुतिन की यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब अमेरिकी विरोध के बावजूद भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीद रहा है। यहां बड़ा सवाल यह है कि भारत के लिए अमेरिका ज्यादा उपयोगी है या रूस ज्यादा अहम है। आइए जानते हैं कि रक्षा और सामरिक रूप से भारत के लिए रूस और अमेरिका दोनों क्यों उपयोगी है। शीत युद्ध और उसके बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में किस तरह का बदलाव आया है। आइए जानते हैं कि भारत की रक्षा नीति क्या है।
भारत का दोनों देशों के साथ संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ के साथ भारत के बहुत मधुर संबंध थे। उस दौरान भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते उतने मधुर नहीं थे। शीत युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय परिदृष्य में बड़ा फेरबदल हुआ है। इसका असर देशों के अंतरराष्टीय संबंधों पर भी पड़ा है। शीत युद्ध के खात्मे के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में क्षेत्रीय संतुलन में बड़ा फेरबदल हुआ है। इसके चलते दोनों देशों के संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। भारत और अमेरिका के संबंधों को इसी क्रम में देखा जा सकता है।
भारत और रूस के संबंध शुरुआत से ही बहुत ही मजबूत रहे हैं, परंतु किसी भी अन्य साझेदारी की तरह समय के साथ इसमें कुछ सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई है। वर्तमान में भारत और रूस के साझा हितों को देखते हुए रक्षा क्षेत्र में भारत-रूस सहयोग को ‘मेक इन इंडिया’ पहल से जोड़कर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊर्जा देने की जरूरत महसूस की गई है। हाल ही में रूस सरकार द्वारा किसी उत्पाद या उपकरण की बिक्री के बाद भारतीय उपभोक्ताओं को अतिरिक्त पुर्जों के लिए मूल उपकरण निर्माता से सीधे संपर्क करने की अनुमति प्रदान की गई है। यह दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।