श्रीकृष्ण और गायों के प्रेम का प्रतीक है बहुला चौथ
नई दिल्ली। जन्माष्टमी के पहले पड़ने वाले इस बहुला चौथ के व्रत को श्रीकृष्ण और गायों के बीच के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। बताया जाता है कि श्रीकृष्ण ने ही गाय को सबसे अधिक प्रेम किया, वह गोविन्द कहलाए। भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी तिथि को पड़ने वाला बहुला चतुर्थी व्रत इसी प्रेम का प्रतीक है। इस बार यह बुधवार 25 अगस्त यानी की आज पड़ रहा है। मान्यताओं के मुताबिक श्रीकृष्ण ने इस चतुर्थी के माध्यम से गाय के महत्त्व के साथ-साथ मां और संतान के प्रेम के महत्त्व को भी दर्शाया है।
गाय को महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में सर्वदेवमय कहा गया है। अर्थात जिसमें सभी देवों का वास है। गाय के सींगों के मध्य में ब्रह्मा, ललाट पर शंकर, कानों में देवताओं के वैद्य अश्विनी और कुमार, नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य, ग्रीवा में पार्वती, उदर में साध्य देवता, पीठ में नक्षत्र गण, ककुद् में आकाश, थनों में चार समुद्र और गोबर में लक्ष्मी जी का निवास माना जाता है। इसी कारण गाय को माता कहा गया है।
व्रत में क्या करें क्या नहीं जानिए-
• यह व्रत पांच, दस या सोलह वर्ष तक करने के बाद ही उद्यापन करना चाहिए।
• इस व्रत से संतान के रास्ते में आ रही विघ्न-बाधाएं शांत होती हैं।
• वे लोग, जिनकी संतान पर शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैया चल रही है, उन्हें यह व्रत स्वयं रखना चाहिए। इस दिन गायों को हरा चारा खिलाना चाहिए।
• इस व्रत में अन्न न खाएं।
• जो पकवान बनाएं, उन्हीं से गाय माता को भोग लगाएं।
• भारत के कुछ भागों में इस दिन जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है।
• रात में चंद्रमा, गणेश और चतुर्थी माता को अर्घ्य दिया जाता है, फिर व्रत पूर्ण होता है।
• ध्यान रहे, इस व्रत में गाय का दूध और उससे बने खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए।