राग, द्वेष और वासनाओं के कारण हम सर्वत्र सर्वकाल में सुलभ ईश्वर को नहीं पहचान पाते: स्वामी चिन्मयानंद
स्वामी चिन्मयानंद जी कहते हैं कि कोई भी ईश्वर को नहीं पहचानता, भले ही वह हर समय हमारे साथ हो। यह राग और द्वेष के कारण है।
अर्ली न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। आज के कार्यक्रम की शुरुआत प्रार्थना के साथ हुई। हम अपने आस-पास की दुनिया पर प्रभाव डाले बिना एक दिन भी नहीं जी सकते हैं और हमारे पास एक विकल्प है कि हम किस तरह का प्रभाव उत्पन्न करते हैं। आज हम अपने देश, अपनी भारत माता के लिए प्रार्थना करते हैं। आप पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होकर दैदीप्यमान रहें। हम आपको नमन करते हैं।
स्वामी चिन्मयानंद जी कहते हैं कि कोई भी ईश्वर को नहीं पहचानता, भले ही वह हर समय हमारे साथ हो। यह राग और द्वेष के कारण है। जब हम एक व्यक्तिगत इकाई के रूप में मानसिक और बौद्धिक स्तर पर रहते हैं, हम हर चीज को ‘राग – जो चीजें मुझे पसंद हैं’ और ‘द्वेष – जिन चीजों से मुझे नफरत है’ में विभाजित करते हैं। जब तक वासना आपके मन और बुद्धि में है तब तक आप बाहरी दुनिया पर प्रतिक्रिया करेंगे। जब वासनाओं को कम किया जाता है, तो व्यक्ति राग, द्वेष, लगाव, इच्छाओं के बिना दुनिया में कार्य करने के लिए स्वतंत्र होता है। वह दुनिया को वैसे ही जीता है जैसे कि वह है।
जब इस प्रकार आपके मन में राग या द्वेष का उदय होता है, तो उसमें से ‘द्वंद्व-मोह’ – पसंद और नापसंद आदि पैदा होते हैं। मन के मायावी विक्षेप प्रबल पूर्वाग्रहों के कारण शुरू होते हैं। पूर्वाग्रह वासनाओं के कारण होते हैं। जब मन उत्तेजित होता है तो सभी लोग पूर्ण आत्म-भ्रम ‘सम्मोहन’ की स्थिति में प्रवेश करते हैं। इसके बाद वे ऐसी चीजें देखते हैं जो वहां नहीं हैं। हम जिनसे नफरत करते हैं उनमें शैतान और जिनसे हम प्यार करते हैं उनमें देवत्व देखने लगते हैं। वासनाओं द्वारा बहकाये जाने से मैं वाह्य जगत में चीजों की अपनी ही व्याख्या करता हूं, मैं चीजों को वैसा नहीं देख सकता जैसा वे हैं। कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, यह भ्रम जन्म ‘सर्ग’ से ही शुरू हो जाता है। यह वस्तुएं, भावनाएं, विचार आदि उन वासनाओं के कारण है जिन्हें आपने इस वातावरण में इस उपकरण ‘शरीर’ में प्रकट करने के लिए चुना है। उनकी पसंद-नापसंद से कोई नहीं बच सकता।
कृष्ण कहते हैं कि जिन लोगों ने चिंतन और ईश्वर समर्पित कर्मों के माध्यम से वासनाओं का क्षय किया है, उनके पुण्य कर्म बढ़ गए हैं, वे धीरे-धीरे ‘द्वंद-मोह’ के भ्रम से मुक्त हो जाते हैं और फिर जब मन शांत और सतर्क होता है तो वह चिंतनशील हो जाता है। आप आत्म-रचनात्मक प्रयासों के चक्र में आ जाते हैं और ऐसा व्यक्ति अपने आप में अनवरत ध्यान में रहने की शक्ति और संतुलन पाता है। कृष्ण विशेष रूप से बताते हैं कि जिसे आत्मबोध हो गया है ऐसा व्यक्ति दुनिया का सबसे कुशल व्यक्ति है। जो लोग वृद्धावस्था और मृत्यु से मुक्ति के लिए मेरी शरण लेते हैं, वे समग्र रूप से मुझ ब्रह्म और स्वयं के ज्ञान का अनुभव करते हैं। जो लोग मुझे अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ से जानते हैं, वे मृत्यु के समय भी मुझ अनंत को दृढ़ता से जानते हैं।
आज के ज्ञान यज्ञ के प्रारंभ में चिन्मय विद्यालय वडावल्ली, कोयंबटूर के छात्रों ने ‘‘गुरू पादुका स्तोत्रम्’’ गायन किया। वेदांत पाठ्यक्रम बैच – 18 के साधकों द्वारा अध्याय 7 भगवत गीता के श्लोकों का उच्चारण किया गया। साथ ही चिन्मय विश्वविद्यापीठ, चेन्नई का एक परिचयात्मक वीडियो भी दिखाया गया।
इसी के साथ ही पूज्य स्वामी चिन्मयानंद जी की 105वीं जयंती के अवसर पर दिनांक 8 मई 2021 से यूट्यूब के चिन्मय चैनल पर प्रसारित यह ऑनलाइन वीडियो गीता ज्ञान यज्ञ आज समाप्त हो गया।
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