Breaking
Early News Hindi Daily E-Paper 30 January 2025प्रयागराज महाकुम्भ 2025: ”सेना के हवाले हो महाकुंभ’, भगदड़ की घटना पर रो पड़े महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी, की ये मांगमानवता हुई शर्मसार: झाड़ियों में रोती-बिलखती मिली नवजात बच्चीलखनऊ-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग बन्द,महाकुम्भ में बढ़ती भीड़ को लेकर प्रशासन का बड़ा फैसलाप्रयागराज महाकुम्भ 2025:मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पूर्व रात्र 1:30 बजे भगदड,20श्रद्धालुओं के मौत की आशंकाअरविंद केजरीवाल ने पार्टी के घोषणापत्र में 15 गारंटी, जानेराष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को किया संबोधितरक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपने आवास पर झण्डा फहरायादेश मना रहा है 76वाँ गणतंत्र दिवस दुनिया देखेगी भारत की शक्तिEarly News Hindi Daily E-Paper 26 January 2025
राष्ट्रीय

सुप्रीम कोर्ट की ‘रेवड़ी कल्चर’ पर दो टूक, सिर्फ SC तय करेगा मुफ्त सौगात

नई दिल्ली। देश में काफी समय से रेवड़ी कल्चर को लेकर चर्चा जोरों पर है। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि मुफ्त सौगात की परिभाषा क्या है यह फैसला सर्वोच्च अदालत करेगी। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने सभी पक्षों से कहा कि वे शनिवार तक अपने सुझाव कोर्ट को दे दें। मामले की सुनवाई सोमवार को होगी। राजनीतिक दलों को मुफ्त सौगात के वादों की अनुमति नहीं देने की मांग वाली याचिका पर विचार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मामले में उठाए गए मुद्दे तेजी से जटिल होते जा रहे हैं।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम फैसला करेंगे कि मुफ्त की सौगात क्या है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, पीने के पानी तक पहुंच, शिक्षा तक पहुंच को मुफ्त सौगात माना जा सकता है। हमें यह परिभाषित करने की आवश्यकता है कि एक मुफ्त सौगात क्या है। क्या हम किसानों को मुफ्त में खाद, बच्चों को मुफ्त शिक्षा के वादे को मुफ्त सौगात कह सकते हैं। सार्वजनिक धन खर्च करने का सही तरीका क्या है, इसे देखना होगा।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि हम राजनीतिक दलों को वादे करने से नहीं रोक सकते। सवाल यह है कि सही वादे क्या होते हैं, क्या हम मुफ्त शिक्षा के वादे को एक मुफ्त सौगात के रूप में वर्णित कर सकते हैं। क्या मुफ्त पेयजल, शक्तियों की न्यूनतम आवश्यक इकाइयों आदि को फ्रीबीज के रूप में वर्णित किया जा सकता है। क्या उपभोक्ता उत्पाद और मुफ्त इलेक्ट्रॉनिक्स को कल्याण के रूप में वर्णित कर सकते हैं।

कोर्ट ने कहा कि आज चिंता यह है कि जनता के पैसे खर्च करने का सही तरीका क्या है। कुछ लोग कहते हैं कि पैसा बर्बाद हो गया है, कुछ लोग कहते हैं कि यह कल्याण कार्य है। मुद्दे तेजी से जटिल हो रहे हैं। आप अपनी राय देते हैं, आखिरकार, बहस और चर्चा के बाद हम तय करेंगे।

असल में सुप्रीम कोर्ट भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका दायर पर विचार कर रही है। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और द्रमुक जैसे राजनीतिक दलों ने मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।

आम आदमी पार्टी ने चुनावी भाषण और वादों को समीक्षा के दायरे से बाहर रखने की मांग की है। पार्टी ने कहा है कि चुनाव से पहले किए गए वादे, दावे और भाषण बोलने की आजादी के तहत आते हैं। उन पर रोक कैसे लगाई जा सकती है। पार्टी ने कहा है कि इस मामले में बनाई जाने वाली विशेषज्ञ समिति का संघटन उचित नहीं है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस की नेता जया ठाकुर ने याचिका में कहा कि सत्तारूढ़ दल सब्सिडी प्रदान करने के लिए बाध्य हैं। याचिका में कहा कि कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए योजनाओं को मुफ्त की सौगात नहीं कहा जा सकता। ठाकुर ने उपाध्याय की याचिका का विरोध किया है और मामले में पक्षकार बनाने की मांग की है।

याचिका में कहा है कि सरकार चलाने वाले सत्तारूढ़ दलों का कर्तव्य है कि वह समाज के कमजोर वर्गों का उत्थान करें और योजनाएं बनाएं। इसके लिए सब्सिडी प्रदान करें। याचिका में कहा कि नागरिकों को दी जाने वाली सब्सिडी और रियायतें संवैधानिक दायित्व और लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं।

तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके सरकार ने मुफ्त सौगात के मामले में कहा है कि इसका दायरा व्यापक है। ऐसे कई पहलू हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है। इसमें कहा गया है कि यह प्रथा किसी राज्य पर आर्थिक बर्बादी ला सकती है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की डीएमके ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि केवल राज्य सरकार की गई कल्याणकारी योजना को मुफ्त सौगात के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।

याचिका में कहा गया है, केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार विदेशी कंपनियों को टैक्स में छूट दे रही है, प्रभावशाली उद्योगपतियों के कर्ज की माफी की जा रही है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता भारत को समाजवादी देश से पूंजीवादी देश में बदलने की कोशिश कर रहा है और जनहित याचिका राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के उद्देश्यों को विफल कर देगी। इस पर कोर्ट ने कहा कि आपने अपना पक्ष रख दिया है, अब कोर्ट को फैसला करने दें।

केंद्र सरकार की ओर से एसजी तुषार मेहता ने कहा कि समाज कल्याण की हमारी समझ सब कुछ मुफ्त में बांटने की है, तो मुझे खेद है कि यह समझ एक अपरिपक्व समझ है। उन्होंने कहा कि मुफ्त देने की एक सीमा होनी चाहिए। मुफ्त सौगात मतदाताओं के निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करते हैं और आर्थिक आपदा का कारण बन सकते हैं।

Related Articles

Back to top button