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नई दिल्ली : किसान इस वक्त रबी फसलों की बुवाई कर रहे हैं. गेहूं रबी सीजन की प्रमुख फसल है और कई राज्यों में इसकी बड़े पैमाने पर खेती है. लेकिन जानकारी के आभाव में किसान उन किस्मों का चुनाव नहीं कर पाते, जिनसे उन्हें अधिक पैदावार हासिल हो.
उन्नत किस्मों में रोग लगने और कीट के हमलों की आशंका भी कम हो जाती है. ऐसे में किसानों को कीटनाशक पर खर्च नहीं करना पड़ता और लागत में कमी आने से कमाई स्वत: बढ़ जाती है.
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से और राजस्थान में गेहूं की बुवाई अपने अंतिम चरण में है. लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में अभी बुवाई रफ्तार पकड़ रही है और कुछ हिस्सों में अभी शुरू भी नहीं हुई है. ऐसे में अगर किसान पहले से ही उन्नत किस्म के बीज की व्यवस्था कर लेंगे तो उन्हें आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी.
करण नरेंद्र
किसान करण नरेंद्र किस्म की खेती कर सकते हैं. इससे एक हेक्टेयर में 61.3 क्विंटल तक औसत पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. इस किस्म में 82.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज की क्षमता मौजूद है. इसका तना मजबूत और होता है और जलभराव की परिस्थितियों से निपटने की क्षमता होती है. 143 दिन में तैयार होने वाले करण नरेंद्र पर पीला सड़न रोग का भी असर नहीं होता.
करण वंदना
करण वंदना 148 दिन में पककर तैयार हो जाने वाली किस्म है. इसकी खेती से किसान 61 से 96 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार प्राप्तल कर सकते हैं. इसमें पीला सड़न, पत्ती सड़न और झुलसा रोग से बचने की क्षमता है.
डीबीडब्ल्यू-187
ह किस्म 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. डीबीडब्ल्यू-187 एनईपीजेड किस्म से किसान एक हेक्टेयर में 49 से 65 क्विंटल तक की पैदावार हासिल कर सकते हैं. इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बोया जा सकता है. इसके अलावा पूर्वोत्तर के उत्तरी इलाकों में भी इसकी खेती की जा सकती है.
डीबीडब्ल्यू 47
डीबीडब्ल्यू 47 में यलो पिगमेंट पाया जाता है. यहीं वजह है कि इसका पास्ता बनाने में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. इस किस्म की बुवाई कर किसान 74 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हासिल कर सकते हैं.
करण श्रिया को सिर्फ एक सिंचाई की जरूरत पड़ती है. 127 दिन में पकने वाली इस किस्म में सूखे जैसी परिस्थिति को सहन करने की क्षमता है. इसमें झुलसा, पत्ती सड़न और करनाल बंट जैसी बीमारियों से भी सुरक्षा के गुण मौजूद हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत के मैदानी इलाकों के किसान इसे बो सकते हैं. इसकी उपज थोड़ी कम है और एक हेक्टेयर में 36.7 क्विंटल से 55.6 क्विंटल के बीच है.