पटना। जातिगत जनगणना नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। यह मांग दो बार विधानमंडल से सर्वसम्मति से पारित हो चुकी है। बिहार के सभी दल इसके पक्ष में हैं। प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार को उनके जवाब का इंतजार है। नीतीश के अनुसार जनगणना शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री इस पर निर्णय ले लेंगे। पिछले वर्ष ही जनगणना शुरू होनी थी, लेकिन कोरोना के कारण नहीं हो सकी। अब उम्मीद है कि हालात सामान्य रहे तो अगले वर्ष इसकी शुरुआत हो जाएगी। यानी चार माह में स्पष्ट हो जाएगा कि जातिगत जनगणना होगी या नहीं।
जातिगत जनगणना को लेकर इस समय बहस छिड़ी है। सबसे ज्यादा मुखर बिहार है, जहां पक्ष हो या विपक्ष सभी इसके पक्ष में हैं। इस मुद्दे पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी के सुझाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भा रहे हैं और नीतीश कुमार का समर्थन तेजस्वी का हौसला बढ़ा रहा है। नीतीश सबको लेकर दिल्ली में प्रधानमंत्री से मिल आए हैं, लेकिन साथ में यह सवाल भी छोड़ आए हैं कि इस बार बिहार से दिल्ली की ओर बढ़े उनके कदम मांग पूरी न होने पर किस तरफ बढ़ेंगे? बिहार की जनता से किए गए वादों को लेकर या गठबंधन धर्म के पालन की ओर।
बिहार की राजनीति में सोमवार का दिन अलग था। जातिगत जनगणना के मुद्दे की छतरी तले सारे राजनीतिक दल साथ खड़े थे। अगुआ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे और उनके साथ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित दस दलों के नेता थे। मौका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात का था। मुलाकात के बाद बाहर निकलने पर बिहारी नेताओं के चेहरों पर छाई मुस्कान और मुंह से फूटे बोल बता रहे थे कि मुलाकात बढ़िया रही। चुनाव के समय एक-दूसरे पर हमलावर नीतीश और तेजस्वी की केमिस्ट्री तो देखने लायक थी। एक-दूसरे की तारीफ करते दोनों नहीं अघा रहे थे। नीतीश ने कहा कि प्रधानमंत्री ने हमारी बात सुनी है और इन्कार नहीं किया है। तेजस्वी ने यह कहकर इसे और हवा दी कि यह केवल बिहार की मांग नहीं है। यह पूरे देश की मांग है। अब चर्चा तेज है कि अगर इस प्रतिनिधिमंडल को निराशा हाथ लगी तो क्या होगा? स्वाभाविक है कि आंदोलन की रूपरेखा बनेगी। तेजस्वी आंदोलन की राह जा सकते हैं, पर मोदी विरोधी सभी दलों की निगाहें नीतीश पर होंगी, क्योंकि एनडीए के साथ होते हुए भी वे इस मामले में खुलकर सामने आए हैं।
अब सवाल उठता है कि जातिगत जनगणना अगर होती है तो यह नीतीश कुमार की जीत होगी, लेकिन अगर नहीं होती है तो नीतीश का अगला कदम क्या होगा? क्योंकि बिहार में सरकार में उसकी साथी भाजपा केवल साथ भर ही साथ दिखाई दे रही है। प्रतिनिधिमंडल में भाजपा कोटे से प्रदेश में मंत्री जनक राम गए जरूर थे, लेकिन उनका यही कहना था कि नरेन्द्र मोदी का फैसला ही भाजपा का फैसला होगा। सुशील मोदी ने जरूर बयान दिया कि भाजपा हमेशा इसकी पक्षधर रही है, लेकिन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. सीपी ठाकुर आदि जातिगत के बजाय आíथक जनगणना के पक्षधर हैं। प्रधानमंत्री से मिलने से पहले ही नीतीश कुमार इशारा कर चुके हैं कि इसके सर्मथकों को वे एक मंच पर लाएंगे।
मोदी की कट्टर विरोधी के रूप में उभरी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी नीतीश की प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद यह कह दिया है कि हर राज्य की परिस्थितियां अलग होती हैं, फिर भी यदि अन्य राज्य के नेता इसके पक्ष में आते हैं तो वह भी साथ आने पर विचार करेंगी। समर्थन जुटाने नीतीश तभी निकलेंगे जब मोदी की तरफ से ना होगी। तब अगर नीतीश इस मुद्दे पर मोदी से अलग राह अपनाते हैं तो साफ है कि संदेश मोदी विरोध ही जाएगा, जो विपक्षियों को रास आएगा, क्योंकि नीतीश की छवि बेहतर है और मोदी के गोल में उनका कद भी काफी बड़ा है। विपक्ष के पास फिलहाल मोदी के खिलाफ नीतीश जैसा कोई चेहरा भी नहीं है। ऐसे में नीतीश का विरोध एनडीए में दरार जैसा ही होगा। नीतीश जैसे मंङो नेता इस परिस्थिति का आकलन करना बेहतर जानते हैं। बिहार में भाजपा से अलग होने के बाद विशेष राज्य के दर्जे के सवाल पर 2014 में कमजोर राज्यों को एक करके विपक्ष का चेहरा बनने का मौका उनके पास था, लेकिन उस समय यह नहीं हो पाया। इस बार जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सौम्य तरीके से प्रधानमंत्री से हुई उनकी मुलाकात आगे क्या गुल खिलाएगी, उस पर सभी की निगाहें रहेंगी।