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उत्तर प्रदेशलखनऊ

लखनऊ चिड़ियाघर की डायमंड जुबली समारोह की तैयारी , सौ के पार चिड़ियाघर ।

लखनऊ:,लखनऊ की कुछ खास जगहों मे चिड़ियाघर का अलग ही स्थान है, लखनऊ चिड़ियाघर इस माह सौ वर्ष का सफर तय करने जा रहा है । 29 नवंबर को सौ साल पूरे होने पर जश्न मनाने की तैयारी है। चिड़ियाघर प्रशासन आयोजन को बेहतर बनाने में जुटा है।

मुख्य अतिथि से लेकर हर दिन होने वाले आयोजन की सूची बन रही है। लखनऊ की शान चिड़ियाघर में हर वर्ष करीब पंद्रह लाख दर्शक आते हैं। नरही मोहल्ले के पास चिडिय़ाघर की पहचान पहले बनारसी बाग थी लेकिन फिर प्रिंस ऑफ वेल्स जुलोजिकल्स गार्डेंन, चिड़ियाघर और अब नवाब वाजिदअली शाह जूलोजिकल गार्डेंन का नाम उसे मिला सार्वजनिक अवकाशों के दिन चिडिय़ाघर में इतनी भीड़ होती है कि पैर रखने की जगह नहीं मिलती है। अपने कुछ वन्यजीवों को लेकर चिडिय़ाघर सिर्फ देश ही नहीं, विदेशों में भी चर्चा में रहा।

गेंडा लोहित ने डा.रामकृष्ण दास को मार डाला था। दोनों में दोस्ती थी। डा. betfinal रामकृष्ण दास उसके पास बाड़े में दिखते थे लेकिन गेंडा भी शांत खड़ा रहता था। वह गेंडा को छू भी लेते थे लेकिन 15 मार्च 1995 का दिन दुखदायी रहा। डा.रामकृष्ण दास गेंडा की तरफ बढ़ ही रहे थे कि वह गुस्से में दिखा। गेंडा ने हमला कर दिया और एक झटके में भी डा. لعب البوكر रामकृष्ण दास की मौत हो गई। इस घटना से गेंडा लोहित देश दुनिया में चर्चा में रहा और उसे देखने लोग आने लगे थे। एक और कहानी चिडिय़ाघर से जुड़ी है।

मोबाइल सर्कस से मार्च 1998 में पकड़ कर लाए गए बबर शेर वृंदा भी देश दुनिया में छा गया था। उसकी आंखों से दिखता नहीं था और पिजंड़े में रहने से उसकी कमर भी टेढ़ी हो गई थी। चिडिय़ाघर के अस्पताल के पास पिंजड़े में रहता था और दर्शक भी उसे देखने जाते थे। लगातार बिगड़ती उसकी तबियत को देखते हुए मर्सी कीलिंग का निर्णय लिया, मतलब इंजेक्शन देखकर उसे मारा जाना था। इसे लेकर वन्यजीव प्रेमी विरोध में उतर आए तो दवा के साथ ही दुआ भी होने लगी थी। इलाज का खर्च उठाने को हाथ बढ़ गए।

चिड़ियाघर से जुड़े कुछ एैतिहासिक पल जो यादगार बन गये।

वर्ष 2000 में तत्कालीन  प्रधानमंत्री जापान के प्रधानमंत्री को हाथी का बच्चा भेंट करना चाहते थे। बिहार सड़क मार्ग से उस  लाया जा रहा था लेकिन उसकी हालत खराब हो गई बीमार हालत में लखनऊ चिडिय़ाघर में उतारा गया। उसे देखने भारत में जापान के राजदूत आए थे लेकिन बच नहीं पाया।

वर्ष 1960 में बाढ़ आने से बाघ और शेर भी अपनी मांद की छत पर आ गए थे और डर यह बन रहा था कि वह बाहर न जाएं। एक टाइगर तो बाहर भी आ गया था,जो खुद ही अंदर बाड़े में चला गया था।
वर्ष 1960 में प्रधानमंत्री की हैसियत से जवाहर लाल नेहरू ने भी चिडिय़ाघर की सैर की तो तीन दशक बाद उनका राजहंस जहाज भी चिडिय़ाघर की शान बन गया है,
वर्ष 1965 में चिडिय़ाघर में बने संग्रहालय में मिस्त्र की ममी (लाश, जो आज भी सुरक्षित है) चर्चा में रही। नन्हें सारस हैप्पी के पंख तराशने का मामला आया तो दुनिया भर के वन्यजीवप्रेमियों ने हंगामा मचा दिया, लिहाजा उसे सुरक्षित गोंडा के पक्षी विहार में छोडऩा पड़ा

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