अर्ली न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ: स्वामी चिन्मयानंद कहते हैं कि आपके विचार कहाँ से आये हैं। आप कभी विचार नहीं कर पाते क्योंकि आप स्वयं ‘विचार’ के विचार, विषय आदि में उलझे रहते हैं। विचार चेतना के विक्षोभ हैं। शिक्षक आगे समझाते हैं कि विचार क्या है? तो कहते हैं कि यद्यपि विचार कभी किसी वस्तु के अभाव में नहीं हो सकता, वस्तुएं कभी भी विचार नहीं हो सकतीं। अतः वस्तु एवं चेतना का संयोग ही विचार है अथवा किसी वस्तु की चेतना ही विचार है। वस्तु के अभाव में जागरूकता चेतना है। प्रभवः प्रलयस्तथा – सभी पदार्थ मेरी चेतना के प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं, वो उठते गिरते रहते हैं, यही खेल विचार है। विचारों के प्रभाव से हम इस द्रष्टिगोचर जगत का अनुभव करते हैं। विचारों के शांत हो जाने अथवा निद्रा में वाह्य जगत, संसार एवं संबंधों का साधक के लिए अस्तित्व नहीं होता। सुषुप्ति से बाहर आते ही मन जाग्रत हो जाता है और विचारों के उत्पन्न होते ही मन संसार के द्वैत का अनुभव करने लगता है। मन के अभाव में द्वैत का भी अभाव हो जाता है। यह चेतना ही वह माध्यम है जहाँ विचार उत्पन्न होते, रहते, क्रीड़ा करते और लुप्त होते हैं। यह हम सभी के अंदर का सत्य है। हमारे विचारों के फलस्वरूप आचरण का जन्म होता है। अतः यह समस्त परिवर्तनशील चराचर जगत एक ही परम सत्ता में उत्पन्न, स्थित और लुप्त होता रहता है। एक साधक जिसका मन शुद्ध है, वासनाओं का क्षय हो गया हो, उनकी क्षमताओं का संसार में अपव्यय सीमित है वो ही स्थिर हो मनन अथवा ध्यान कर सकते हैं। मत्तः परतरं नान्यत् किंचिदस्ति धनंजय। मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव। कृष्ण कहते हैं कि मेरे से अधिक महान, उच्च कुछ भी नहीं। सम्पूर्ण सृष्टि मुझमें ही उत्पन्न, स्थित और विलीन होती है। भगवान ही इस परिवर्तनशील जगत का कारण है। एक साधक बुद्धि से समझना प्रारंभ करते हुए साधना में एक दिन उस उच्च स्थिति को पहुँच जाता है जहाँ उसके तर्क और प्रश्न ही नहीं रहते क्योंकि उसे प्रश्न की आवश्यकता ही नहीं रहती। जब साधक बुद्धि से परे चला गया तो भूत, भविष्य नहीं रहा सिर्फ वर्तमान ही। मन केे शांत होने पर समय, कार्य, कारण, सृष्टि, सृष्टा, विषय, पदार्थ सब संविलीन हो जाते हैं। वो स्थिति ही है जिससे उच्च कुछ भी नहीं, वही लक्ष्य, गंतव्य और साधक के क्रमानुगत उन्नति की परिपूूर्णता है, जहाँ साधक साध्य में विलीन हो गया वो अनंत और शाश्वत है। मत्तः परतरं नास्ति। उससे उच्च किंचित मात्र भी कुछ नहीं। भगवान आगे कहते हैं कि मैं ही इस सृष्टि का कारण हूँ और इसीलिए यह जगत मणियों की तरह जिस एक अदृश्य सूत्र में पिरोयी हैं वो मैं ही हूँ।
इसके पूर्व स्वामी स्वरूपानंद जी, चिन्मय मिशन विश्व प्रमुख ने अपने संबोधन में बताया कि सेवा हेतु किया गया कोई कार्य छोटा अथवा महत्वहीन नहीं होता। सभी को अपना छोटे से छोटा प्रयत्न भी जरूर करना ही चाहिए। अतः इस कोविड महामारी में यदि प्रत्येक व्यक्ति किसी एक व्यक्ति तक पहुंच कर सहायता करे तो इस आपदा से निपटा जा सकता है “Each One Reach One” । इसके साथ चिन्मय मिशन द्वारा कोविड महामारी के दौरान किए जा रहे सहायता कार्यों का एक वीडियो प्रदर्शित किया गया।
इसके साथ ही चिन्मय विद्यालय कन्नूर ने ‘‘श्रीगुरूदेव को करें नमन हम’’ गीत प्रस्तुत किया। एवं चिन्मय विश्वविद्यापीठ का परिचयात्मक वीडियो भी प्रदर्शित किया गया।
दिनांक 8 मई 2021 से प्रारंभ यह वीडियो ज्ञान यज्ञ 23 मई 2021 तक प्रतिदिन सांय 7ः15 से यूट्यूब के चिन्मय चैनल पर उपलब्ध रहेगा।